Hello Students. Are you Searching for Class 12 Hindi NCERT Solutions of Chapter 12? If yes then you are in the right place. Here we have provided you with the Question and Answers of Chapter 12: बाजार दर्शन. These solutions are written by expert teachers and are so accurate to rely on.
Chapter | 12. बाजार दर्शन |
Subject | Hindi |
Textbook | Aroh, गद्य भाग |
Class | Twelve |
Category | NCERT Solutions for Class 12 |
NCERT Solutions for Class 12 Hindi is a great resource for students to prepare for their Board Examinations. These Solutions covers the every question and answer of Class 12 Hindi Chapter 12: बाजार दर्शन. They are made by expert teachers and faculties keeping in view the new curriculum of CBSE.
NCERT Solutions for Class 12 Hindi Chapter 12 Question Answer
बाजार दर्शन Solutions
पाठ के साथ
Q1) बाजार का जादू चढ़ने और उतरने पर मनुष्य पर क्या-क्या असर पड़ता है?
Answer) बाजार का जादू चढ़ने और उतरने पर मनुष्य पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं –
- बाजार में आकर्षक वस्तुएँ देखकर मनुष्य उनके जादू में बँध जाता है।
- उसे उन वस्तुओं की कमी खलने लगती है।
- वह उन वस्तुओं को जरूरत न होने पर भी खरीदने के लिए विवश होता है।
- वस्तुएँ खरीदने पर उसका अह संतुष्ट हो जाता है।
- खरीदने के बाद उसे पता चलता है कि जो चीजें आराम के लिए खरीदी थीं वे खलल डालती हैं।
Q2) बाजार में भगत जी के व्यक्तित्व का कौन-सा सशक्त पहलू उभरकर आता है? क्या आपकी नज़र में उनको आचरण समाज में शांति स्थापित करने में मददगार हो सकता है?
Answer) भगत जी समर्पण भी भावना से ओतप्रोत हैं। धन संचय में उनकी बिलकुल रुचि नहीं है। वे संतोषी स्वभाव के आदमी हैं। ऐसे व्यक्ति ही समाज में प्रेम और सौहार्द का संदेश फैलाते हैं। इसलिए ऐसे व्यक्ति समाज में शांति स्थापित करने में मददगार साबित होते हैं।
Q3) ‘बाज़ारूपन’ से क्या तात्पर्य है? किस प्रकार के व्यक्ति बाजार को सार्थकता प्रदान करते हैं अथवा बाज़ार की सार्थकता किसमें हैं?
Answer) बाज़ारूपन से लेखक का तात्पर्य है कि बाज़ार को अपनी आवश्यकता के अनुरूप नहीं बल्कि दिखाने के लिए प्रयोग में लाना। इस प्रकार हम अपने सामर्थ्य से अधिक खर्च करते हैं और अनावश्यक वस्तुएँ खरीद लाते हैं, तो हम बाज़ारूपन को बढ़ावा देते हैं। हमें वस्तुओं की आवश्यकता नहीं होती है, बस हम दिखाने का प्रयास करते हैं कि हम यह खरीद सकते हैं। हमारी यह आदत हमें बाज़ार का सही प्रयोग नहीं करने देती है। बाज़ार को सार्थकता वही व्यक्ति दे सकते हैं, जो जानते हैं कि हमें क्या और क्यों खरीदना है? बाज़ार का निर्माण ही इसलिए हुआ है कि हमारी आवश्यकताओं को हमें दे सके। अतः जो व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं को जानकर ही वस्तु खरीदते हैं और बाज़ार से उसे ही लेकर चले आते हैं सही मायने में वही बाज़ार को सार्थकता देते हैं।
Q4) बाज़ार किसी का लिंग, जाति, धर्म या क्षेत्र नहीं देखता, वह देखता है सिर्फ उसकी क्रय शक्ति को। इसे रूप में वह एक प्रकार से सामाजिक समता की भी रचना कर रहा है। आप इससे कहाँ तक सहमत हैं?
Answer) यह बात बिलकुल सत्य है कि बाजारवाद ने कभी किसी को लिंग, जाति, धर्म या क्षेत्र के आधार पर नहीं देखा। उसने केवल व्यक्ति के खरीदने की शक्ति को देखा है। जो व्यक्ति सामान खरीद सकता है वह बाजार में सर्वश्रेष्ठ है। कहने का आशय यही है कि उपभोक्तावादी संस्कृति ने सामाजिक समता स्थापित की है। यही आज का बाजारवाद है। प्रश्न 5. आप अपने समाज से कुछ ऐसे प्रसंग का उल्लेख करें
Q5) आप अपने समाज से कुछ ऐसे प्रसंग का उल्लेख करें
(क) जब पैसा शक्ति के परिचायक के रूप में प्रतीत हुआ।
(ख) जब पैसे की शक्ति काम नहीं आई।
Answer क) एक बार एक कार वाले ने एक बच्चे को जख्मी कर दिया। बात थाने पर पहुँची लेकिन थानेदार ने पूरा दोष बच्चे के माता-पिता पर लगा दिया। वह रौब से कहने लगा कि तुम अपने बच्चे का ध्यान नहीं रखते। वास्तव में पैसों की चमक में थानेदार ने सच को झूठ में बदल दिया था। तब पैसा शक्ति का परिचायक नजर आया।
Answer ख) एक व्यक्ति ने अपने नौकर का कत्ल कर दिया। उसको बेकसूर मार दिया। पुलिस उसे थाने में ले गई। उसने पैसे ले-देकर मामले को सुलझाने का प्रयास किया लेकिन सब बेकार। अंत में उस पर मुकदमा चला। आखिरकार उसे 14 वर्ष की उम्रकैद हो गई। इस प्रकार पैसे की शक्ति काम नहीं आई।
पाठ के आसपास
Q1) ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ में बाज़ार जाने या न जाने के संदर्भ में मन की कई स्थितियों का जिक्र आया है। आप इन स्थितियों से जुड़े अपने अनुभवों का वर्णन कीजिए।
मन खाली हो
मन खाली न हो
मन बंद हो
मन में नकार हो
Answer)
मन खाली हो – जब मुझे पता होता है कि मुझे कुछ नहीं खरीदना होता है, तो मैं बाज़ार से खाली हाथ ही आता हूँ। माँ ने एक बार मुझे काली मिर्च लाने भेजा। उसके लिए हमारे यहाँ शनि बाज़ार लगता है। मैं अपने लोकल बाज़ार में गया मगर वहाँ काली मिर्च नहीं मिली। उसके बाद में शनि बाज़ार भी गया। वहां जाकर मुझे काली मिर्च मिली। जब मैं घर पहुँचा, तो भाई से पता चला कि वहाँ पर बड़े मज़ेदार खाने के स्टॉल लगे थे। लेकिन मुझे पता ही नहीं चला।
मन खाली न हो– मन खाली न होने पर मनुष्य अपनी इच्छित चीज खरीदता है । उसका ध्यान अन्य वस्तुओं पर नहीं जाता । में घर में जरूरी सामान की लिस्ट बनाकर बाजार जाता है और सिफ्रे उन्हें ही खरीदकर लाता हूँ । मैं अन्य चीजों को देखता जरूर हूँ, पर खरीददारी वहीं करता हूँजिसकौ मुझे जरूरत होती है ।
मन बंद हो– मेरा मन बंद होता है, तो मैं किसी चीज़ की तरफ़ आकर्षित नहीं होता हूँ। ऐसा तब हुआ था, जब मैं माँ के साथ बाज़ार गया था। माँ मुझे जन्मदिन का उपहार दिलाना चाहती थी लेकिन मैंने लेने से इंकार कर दिया। मैं कुछ भी खरीद कर नहीं लाया।
मन में नकार हो– यह ऐसा समय होता है, जब मन उदास हो। तब किसी भी वस्तु के प्रति आकर्षण का भाव नहीं रहता है। ऐसा तब हुआ था, जब मेरा दोस्त प्रवीण लंदन रहने चला गया था। बहुत समय तक मुझे बाज़ार तथा उसमें विद्यमान वस्तुओं के लिए नकार भाव उत्पन्न हो गया था।
Q2) ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ में किस प्रकार के ग्राहकों की बात हुई है? आप स्वयं को किस श्रेणी का ग्राहक मानते/मानती हैं?
Answer) इस पाठ में प्रमुख रूप से दो प्रकार के ग्राहकों का चित्रण निबंधकार ने किया है। एक तो वे ग्राहक, जो ज़रूरत के अनुसार चीजें खरीदते हैं। दूसरे वे ग्राहक जो केवल धन प्रदर्शन करने के लिए चीजें खरीदते हैं। ऐसे लोग बाज़ारवादी संस्कृति को ज्यादा बढ़ाते हैं। मैं स्वयं को पहले प्रकार का ग्राहक मानता/मानती हैं क्योंकि इसी में बाजार की सार्थकता है।
Q3) आप बाज़ार की भिन्न-भिन्न प्रकार की संस्कृति से अवश्य परिचित होंगे। मॉल की संस्कृति और सामान्य बाज़ार और हाट की संस्कृति में आप क्या अंतर पाते हैं? पर्चेजिंग पावर आपको किस तरह के बाजार में नजर आती है?
Answer) मॉल, सामान्य बाज़ार तथा हाट की संस्कृति में बहुत अंतर हैं। मॉल में आपको हर वस्तु ब्रैंडिड मिलती है। इनके मूल्य बहुत अधिक होते हैं। यह मात्र व्यवसायी, उच्च पदों आदि जैसे लोगों के लिए उपयुक्त है। निम्न मध्यवर्गीय तथा निम्न वर्गीय लोगों के लिए इन्हें खरीदना कठिन होता है। सामान्य बाज़ार में हर प्रकार के लोगों द्वारा खरीदारी की जाती है। यहाँ हर वर्ग का व्यक्ति अपनी सुविधा अनुसार सामान खरीदता है। हाट की संस्कृति शहरों के लिए कम उपयुक्त है। यह गाँव के लिए हैं। यह सप्ताह में एक बार लगता है और लोगों द्वारा यहाँ पर आवश्यकता अनुसार ही सामान खरीदा जाता है। पर्चेज़िंग पावर मात्र मॉल संस्कृति के लिए उपयुक्त है। यहाँ पर आप अपनी इस पावर के दम पर उच्चब्रांड की वस्तुएँ खरीद सकते हैं।
Q4) लेखक ने पाठ में संकेत किया है कि कभी-कभी बाज़ार में आवश्यकता ही शोषण का रूप धारण कर लेती है। क्या आप इस विचार से सहमत हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
Answer) आवश्यकता पड़ने पर व्यक्ति अपेक्षित वस्तु हर कीमत पर खरीदना चाहता है। वह कोई भी कीमत देकर उस वस्तु को प्राप्त कर लेना चाहता है। इसलिए वह कई बार शोषण का शिकार हो जाता है। बेचने वाला तुरंत उस वस्तु की कीमत मूल कीमत से ज्यादा बता देता है। इसीलिए लेखक ने ठीक कहा है कि आवश्यकता ही शोषण का रूप धारण कर लेती है।
Q5) स्त्री माया न जोड़े यहाँ माया शब्द किस ओर संकेत कर रहा है? स्त्रियों द्वारा माया जोड़ना प्रकृति प्रदत्त नहीं, बल्कि परिस्थितिवश है। वे कौन-सी परिस्थितियाँ हैं जो स्त्री को माया जोड़ने के लिए विवश कर देती है?
Answer) यहाँ ‘माया‘ शब्द का अर्थ है–धन–मगाती, जरूरत की वस्तुएँ । आमतौर पर स्तियों को माया जोड़ते देखा जाता है । इसका कारण उनकी परिस्थितियों है जो निम्नलिखित हैं –
- आत्मनिर्भरता की पूर्ति ।
- घर की जरूरतों क्रो पूरा करना ।
- अनिश्चित भविष्य ।
- अहंभाव की तुष्टि ।
- बच्चों की शिक्षा ।
- संतान–विवाह हेतु ।
आपसदारी
Q1) ज़रूरत-भर जीरा वहाँ से ले लिया कि फिर सारा चौक उनके लिए आसानी से नहीं के बराबर हो जाता है- भगत जी की इस संतुष्ट निस्पृहता की कबीर की इस सूक्ति से तुलना कीजिए-
चाह गई चिंता गई मनुआँ बेपरवाह
जाके कुछ न चाहिए सोई सहंसाह।
–कबीर
Answer) भगत जी के स्वभाव में कबीर जी की ये पंक्तियाँ बिलकुल सही बैठती हैं। यह सारा खेल संतोष रूपी भावना से है। संतोष सबसे बड़ा भाव है। जिस मनुष्य में संतोष है, वह हर प्रकार से धनी है। कोई वस्तु उसे आकर्षित नहीं कर सकती है न उसमें लालच पैदा कर सकती है। जब मन में किसी को पाने की चाह, आकर्षण तथा लालच विद्यमान नहीं है, तो वह सुखी है। उसमें इन भावनाओं के न रहने से वह चिंता मुक्त हो जाता है। चिंता उसे सबसे अलग बना देती है और वह सुखी हो जाता है।
Q2) विजयदान देथा की कहानी ‘दुविधा’ (जिस पर ‘पहेली’ फ़िल्म बनी है) के अंश को पढ़ कर आप देखेंगे/देखेंगी कि भगत जी की संतुष्ट जीवन-दृष्टि की तरह ही गड़रिए की जीवन-दृष्टि है, इससे आपके भीतर क्या भाव जगते हैं?
गड़रिया बगैर कहे ही उस के दिल की बात समझ गया, पर अँगूठी कबूल नहीं की। काली दाड़ी के बीच पीले दाँतों की हँसी हँसते हुए बोला- ‘मैं कोई राजा नहीं हूँ जो न्याय की कीमत वसूल करूँ। मैंने तो अटका काम निकाल दिया। और यह अँगूठी मेरे किस काम की! न यह अँगुलियों में आती ह, न तड़े में। मेरी भेड़ें भी मेरी तरह गँवार हैं। घास तो खाती हैं, पर सोना सूँघती तक नहीं। बेकार की वस्तुएँ तुम अमीरों को ही शोभा देती हैं।’
–विजयदान देथा
Answer) विजयदान देथा की ‘दुविधा’ कहानी का अंश पढ़कर मुझमें भी संतोषी वृत्ति के भाव जगते हैं। गड़रिया चाहता तो वह अपने न्याय की कीमत वसूल सकता था। सामाजिक दृष्टि से यही ठीक भी था क्योंकि अमीर व्यक्ति जो कुछ गड़रिये को दे रहा था वह उसका हक था। लेकिन गड़रिये और भगत जी की संतोषी भावना को देखकर मेरे मन में भी इसी प्रकार के भाव उत्पन्न हो जाते हैं। मन करता है कि जीवन में इस भावना को अपनाए रखें तो किसी प्रकार की चिंता नहीं रहेगी। जब कोई इच्छा या अपेक्षा नहीं होगी तो दुख नहीं होगा। तब हम भी कबीर की तरह शहंशाह होंगे।
Q3) बाज़ार पर आधारित लेख ‘नकली सामान पर नकेल ज़रूरी’ का अंश पढ़िए और नीचे दिए गए बिंदुओं पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
(क) नकली सामान के खिलाफ़ जागरूकता के लिए आप क्या कर सकते हैं?
(ख) उपभोक्ताओं के हित को मद्देनजर रखते हुए सामान बनाने वाली कंपनियों का क्या नैतिक दायित्व है।
(ग) ब्रांडेड वस्तु को खरीदने के पीछे छिपी मानसिकता को उजागर कीजिए?
नकली सामान पर नकेल जरूरी।
अपना क्रेता वर्ग बढ़ाने की होड़ में एफएमसीजी यानी तेजी से बिकने वाले उपभोक्ता उत्पाद बनाने वाली कंपनियाँ गाँव के बाजारों में नकली सामान भी उतार रही हैं। कई उत्पाद ऐसे होते हैं जिन पर न तो निर्माण तिथि होती है और न ही उस तारीख का जिक्र होता है जिससे पता चले कि अमुक सामान के इस्तेमाल की अवधि समाप्त हो चुकी है। आउटडेटेड या पुराना पड़ चुका सामान भी गाँव-देहात के बाजारों में खप रहा है। ऐसा उपभोक्ता मामलों के जानकारों का मानना है। नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिड्सल कमीशन के सदस्य की मानें तो जागरूकता अभियान में तेजी लाए बगैर इस गोरखधंधे पर लगाम कसना नामुमकिन है। उपभोक्ता मामलों की जानकार पुष्पा गिरि माँ जी का कहना है, इसमें दो राय नहीं है कि गाँव-देहात के बाजारों में नकली सामान बिक रहा है।
महानगरीय उपभोक्ताओं को अपने शिकंजे में कसकर बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ, खासकर ज्यादा उत्पाद बेचने वाली कंपनियाँ, गाँव का रुख कर चुकी हैं। वे गाँववालों के अज्ञान और उनके बीच जागरुकता के अभाव का पूरा फायदा उठा रही हैं। उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए कानून ज़रूर है लेकिन कितने लोग इनका सहारा लेते हैं यह बताने की ज़रूरत नहीं। गुणवत्ता के मामले में जब शहरी उपभोक्ता ही उतने सचेत नहीं हो पाए हैं तो गाँव वालों से कितनी उम्मीद की जा सकती है। इस बारे में नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिड्रेसल कमीशन के सदस्य जस्टिस एस. एन. कपूर का कहना है, ‘टी.वी. ने दूरदराज के गाँवों तक में बहुराष्ट्रीय कंपनियों को पहुँचा दिया है। बड़ी-बड़ी कंपनियाँ विज्ञापन पर तो बेतहाशा पैसा खर्च करती हैं। लेकिन उपभोक्ताओं में जागरूकता को लेकर वे चवन्नी खर्च करने को तैयार नहीं हैं।
नकली सामान के खिलाफ जागरूकता पैदा करने में स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थी मिलकर ठोस काम कर सकते हैं। ऐसा कि कोई प्रशासक भी न कर पाए।’ बेशक, इस कड़वे सच को स्वीकार कर लेना चाहिए कि गुणवत्ता के प्रति जागरुकता के लिहाज से शहरी समाज भी कोई ज्यादा सचेत नहीं है। यह खुली हुई बात है कि किसी बड़े ब्रांड का लोकल संस्करण शहर या महानगर का मध्य या निम्नमध्य वर्गीय उपभोक्ता भी खुशी-खुशी खरीदता है। यहाँ जागरुकता का कोई प्रश्न ही नहीं उठता क्योंकि वह ऐसा सोच-समझकर और अपनी जेब की हैसियत को जानकर ही कर रही है। फिर गाँववाला उपभोक्ता ऐसा क्यों न करे। पर फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि यदि समाज में कोई गलत काम हो रहा है तो उसे रोकने के जतन न किए जाएँ। यानी नकली सामान के इस गोरखधंधे पर विराम लगाने के लिए जो कदम या अभियान शुरू करने की ज़रूरत है वह तत्काल हो।
– हिंदुस्तान 6 अगस्त 2006, साभार
Answer क) नकली सामान के खिलाफ लोगों को जागरूक करना ज़रूरी है। सबसे पहले विज्ञापनों, पोस्टरों और होर्डिंग के माध्यम से यह बताया जाए कि किस तरह असली वस्तु की पहचान की जाए। लोगों को बताया जाए कि होलोग्राम और ISI मार्क वाली वस्तु ही खरीदें। उन्हें यह भी जानकारी दी जाए कि नकली वस्तुएँ खरीदने से क्या हानियाँ हो सकती हैं ?
Answer ख) सामान बनाने वाली कंपनियों का सबसे पहले यही नैतिक दायित्व है कि अच्छा और बढ़िया सामान बनाए। वे ऐसी वस्तुओं का उत्पादन करें जो आम आदमी को फायदा पहुँचायें। केवल अपना फायदा सोचकर ही समान न बेचें। वे मात्रा की अपेक्षा गुणवत्ता पर ध्यान रखें तभी ग्राहक खुश होगा। जो कंपनी जितनी ज्यादा गुणवत्ता देगी ग्राहक उसी कंपनी का सामान ज्यादा खरीदेंगे।
Answer ग) आज के समय में ब्रांडेड सामान खरीदकर मनुष्य अपनी सुदृढ़ आर्थिक स्थिति को दर्शाना चाहता है। इसके अतिरिक्त यह मान लिया जाता है कि एक ब्रांडेड सामान की गुणवत्ता ही अच्छी है। आज ब्रांडेड सामान दिखावे का हिस्सा बन गया है। फिर वह सामान नकली हो या उधार पर लिया गया हो लेकिन लोग इन्हें पहनकर अपनी ऊँची हैसियत दिखाना चाहते हैं। इसके लिए वह माँगकर पहनने से भी नहीं हिचकिचाते।
Q4) प्रेमचंद की कहानी ‘ईदगाह’ के हामिद और उसके दोस्तों का बाजार से क्या संबंध बनता है? विचार करें।
Answer) प्रेमचंद की कहानी ईदगाह से हामिद और उसके दोस्तों का बाज़ार से ग्राहक और दुकानदार का रिश्ता बनता है। वे बाज़ार से अपनी इच्छा तथा आवश्यकतानुसार खरीदारी करते हैं। सब अपनी हैसियत के अनुसार खरीदते हैं और बाज़ार संस्कृति को बढ़ावा देते हैं। इसमें हामिद एक समझदार ग्राहक बनता है, जो ऐसा समान खरीदता है, जो उसकी दादी की आवश्यकता को पूर्ण करता है। उसके अन्य मित्र ऐसे ग्राहक बनते हैं, जो अपनी जेब की क्षमता के अनुसार खर्च करते हैं और बाद में पछताते हैं।
विज्ञापन की दुनिया
Q1) आपने समाचारपत्रों, टी.वी. आदि पर अनेक प्रकार के विज्ञापन देखे होंगे जिनमें ग्राहकों को हर तरीके से लुभाने का प्रयास किया जाता है, नीचे लिखे बिंदुओं के संदर्भ में किसी एक विज्ञापन की समीक्षा कीजिए और यह लिखिए कि आपको विज्ञापन की किस बात से सामान खरीदने के लिए प्रेरित किया।
- विज्ञापन में सम्मिलित चित्र और विषय-वस्तु
- विज्ञापन में आए पात्र व उनका औचित्य
- विज्ञापन की भाषा
Answer) मैंने मैगी के विज्ञापन को देखा। उसे देखकर मुझे लगा कि यह विज्ञापन मेरी भूख रूपी ज़रूरत को कम समय में पूरा करने में सक्षम है। यह मज़ेदार और सस्ता है, जो मैं स्वयं ही बनाकर खा सकती हूँ। इसमें मुझे माँ पर निर्भर होने की आवश्यकता नहीं है।
- विज्ञापन में मैगी कंपनी ने अपने पैकेट को दिखाया है। इस विज्ञापन की विषय वस्तु माँ तथा उसके दो बच्चों पर है। ये अपनी माँ से भूख को दो मिनट में शांत करने के लिए कहते हैं।
- विज्ञापन में तीन पात्र हैं, जिसमें एक माँ तथा उसके दो बच्चे (एक लड़का तथा लड़की) हैं। इनका औचित्य बहुत सार्थक सिद्ध हुआ है। बच्चे माँ से अचानक कुछ कम समय में बना लेने की माँग करते हैं। मैगी ऐसा माध्यम है कि कम समय में बनने वाला व्यंजन है और बच्चों की भूख को भी तुरंत शांत कर देता है।
- विज्ञापन की भाषा सरल और सहज है। इसमें संगीत्मकता गुण प्रधान है। बच्चें गाकर माँ को अपनी भूख के बारे में समझाते हैं।
Q2) अपने सामान की बिक्री को बढ़ाने के लिए आज किन-किन तरीकों का प्रयोग किया जा रहा है? उदाहरण सहित उनका संक्षिप्त परिचय दीजिए। आप स्वयं किस तकनीक या तौर-तरीके का प्रयोग करना चाहेंगे जिससे बिक्री भी अच्छी हो और उपभोक्ता गुमराह भी न हो।
Answer) आज अपने सामान की बिक्री के लिए मज़ेदार विज्ञापनों, फ्री सेंप्लिंग होर्डिंग बोर्ड, प्रतियोगिता, मुफ्त उपहार, मूल्य गिराकर, एक साथ एक मुफ्त देकर आदि तरीकों का प्रयोग किया जा रहा है। इससे सामान की बिक्री में तेज़ी आती है। ये तरीके बहुत ही कारगर हैं। हम अपने उत्पाद की बिक्री के लिए पहले फ्री सेंप्लिंग देगें। इससे हम उपभोक्ता को अपने उत्पाद की गुणवत्ता दिखाकर उनका भरोसा जीतेंगे।
भाषा की बात
Q1) विभिन्न परिस्थितियों में भाषा का प्रयोग भी अपना रूप बदलता रहता है कभी औपचारिक रूप में आती है, तो कभी अनौपचारिक रूप में। पाठ में से दोनों प्रकार के तीन-तीन उदाहरण छाँटकर लिखिए।
Answer)
औपचारिक भाषा-
- मूल में एक और तत्त्व की महिमा सविशेष है।
- इस सिलसिले में एक और भी महत्त्व का तत्त्व है।
- मेरे यहाँ कितना परिमित है और यहाँ कितना अतुलित है।
अनौपचारिक भाषा-
- पैसा पावर है।
- ऐसा सजा-सजाकर माल रखते हैं कि बेहया ही हो जो न फँसे।
- नहीं कुछ चाहते हो, तो भी देखने में क्या हरज़ है।
Q2) पाठ में अनेक वाक्य ऐसे हैं, जहाँ लेखक अपनी बात कहता है कुछ वाक्य ऐसे हैं जहाँ वह पाठक-वर्ग को संबोधित करता है। सीधे तौर पर पाठक को संबोधित करने वाले पाँच वाक्यों को छाँटिए और सोचिए कि ऐसे संबोधन पाठक से रचना पढ़वा लेने में मददगार होते हैं?
Answer)
- बाज़ार में एक जादू है। वह जादू आँख की राह काम करता है।
- जेब खाली पर मन भरा न हो, तो भी जादू चल जाएगा।
- यहाँ एक अंतर चिह्न लेना ज़रूरी है।
- कहीं आप भूल नहीं कर बैठिएगा।
- पैसे की व्यंग्य शक्ति सुनिए। वह दारूण है। अवश्य ऐसे संबोधनों के कारण पाठकों के मन में जिज्ञासा उत्पन्न होती है। वह अपनी जिज्ञासा को शांत करना चाहता है। इसीलिए ऐसे संबोधन पाठक से रचना पढ़वा लेने में सहायक सिद्ध होते हैं।
Q3) नीचे दिए गए वाक्यों को पढ़िए।
(क) पैसा पावर है।
(ख) पैसे की उस पर्चेजिंग पावर के प्रयोग में ही पावर का रस है।
(ग) मित्र ने सामने मनीबैग फैला दिया।
(घ) पेशगी ऑर्डर कोई नहीं लेते।
ऊपर दिए गए इन वाक्यों की संरचना तो हिंदी भाषा की है लेकिन वाक्यों में एकाध शब्द अंग्रेज़ी भाषा के आए हैं। इस तरह के प्रयोग को कोड मिक्सिंग कहते हैं। एक भाषा के शब्दों के साथ दूसरी भाषा के शब्दों का मेलजोल! अब तक आपने जो पाठ पढ़े उसमें से ऐसे कोई पाँच उदाहरण चुनकर लिखिए। यह भी बताइए कि आगत शब्दों की जगह उनके हिंदी पर्यायों का ही प्रयोग किया जाए तो संप्रेषणीयता पर क्या प्रभाव पड़ता है।
Answer)
- पैसे की गरमी या एनर्जी।
- वह तत्व है मनी बैग
- अपनी पर्चेजिंग पावर के अनुपात में आया है।
- तो एकदम बहुत से बंडल थे।
- वह पैसे की पावर को इतना निश्चय समझते हैं कि उसके प्रयोग की परीक्षा का उन्हें दरकार नहीं है।
यदि इस वाक्य में एनर्जी की जगह उत्साह शब्द का प्रयोग किया जाता है तो वाक्य की प्रेषणीयता अधिक प्रभावी होती है। इसी प्रकार ‘मनी बैग’ की जगह नोटों से भरा थैला, पर्चेजिंग पावर की जगह खरीदने की शक्ति, बंडल की जगह गट्ठर और पावर की जगह ऊर्जा या उत्साह प्रभावी होगा क्योंकि हिंदी, पर्यायों के प्रयोग से संप्रेषणीयता ज्यादा बढ़ जाती है।
Q4) नीचे दिए गए वाक्यों के रेखांकित अंश पर ध्यान देते हुए उन्हें पढ़िए।
(क) निर्बल ही धन की ओर झुकता है।
(ख) लोग संयमी भी होते हैं।
(ग) सभी कुछ तो लेने को जी होता था।
ऊपर दिए गए वाक्यों के रेखांकित अंश ‘ही’, ‘भी’, ‘तो’ निपात हैं जो अर्थ पर बल देने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। वाक्य में इनके होने-न-होने और स्थान क्रम बदल देने से वाक्य के अर्थ पर प्रभाव पड़ता है, जैसे
मुझे भी किताब चाहिए (मुझे महत्त्वपूर्ण है।)
मुझे किताब भी चाहिए। (किताब महत्त्वपूर्ण है।)
आप निपात (ही, भी, तो) का प्रयोग करते हुए तीन-तीन वाक्य बनाइए। साथ ही ऐसे दो वाक्यों का निर्माण कीजिए जिसमें ये तीनों निपात एक साथ आते हों।
Answer)
- ही
- उसे ही यह टिकट दे दो।
- मैं वैसे ही उससे मिला।
- तुमने ही मुझे उसके बारे में बताया।
- भी
- कुछ लोग दुष्ट भी होते हैं।
- वह भी उनसे मिल गया।
- उसने भी मेरा साथ छोड़ दिया।
- तो
- रामलाल ने कुछ तो कहा होता।
- तुम लोग कुछ तो शर्म किया करो।
- तुम लोगों को तो फाँसी दे देनी चाहिए।
दो वाक्य
- मैंने ही नारायण शंकर को वहाँ भेजा था लेकिर उसने भी वह किया, कृपा शंकर तो उसे पहले ही कर दिया था।
- आर्यन तो दिल्ली जाना चाहता था लेकिन मैं तो उसे भेजना नहीं चाहता था। तभी तो वह नाराज हो गया।
चर्चा करें
Q1) पर्चेजिंग पावर से क्या अभिप्राय है?
बाज़ार की चकाचौंध से दूर पर्चेज़िंग पावर का साकारात्मक उपयोग किस प्रकार किया जा सकता है? आपकी मदद क लिए संकेत दिया जा रहा है-
(क) सामाजिक विकास के कार्यों में
(ख) ग्रामीण आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने में ……।
Answer) पर्चेजिंग पावर से अभिप्राय है कि खरीदने की क्षमता। कहने का भाव है कि खरीददारी करने का सामर्थ्य लेकिन पर्चेजिंग पावर का सकारात्मक प्रयोग किया जा सकता है। वह भी बाजार की चकाचौंध से कोसों दूर। इसका सकारात्मक प्रयोग सामाजिक कार्य करके और ग्रामीण आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ करके। सामाजिक विकास के कार्य जैसे स्कूल, अस्पताल, धर्मशालाएँ। खुलवाकर उस पैसे का उपयोग किया जा सकता है जो कि लोग फिजूल के सामान पर खर्च करते हैं। आज शॉपिंग माल्स में लगभग 30 प्रतिशत फिजूल पैसा लोग खर्चते हैं क्योंकि वे अपनी शानो शौकत रखने के लिए खरीददारी करते हैं। यदि इसी पैसे को सामाजिक विकास के कार्यों में लगा दिया जाए तो समाज न केवल उन्नति करेगा बल्कि वह अमीरी गरीबी के अंतर से भी बाहर निकलेगा। दूसरे इस पैसे का ग्रामीण आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए उपयोग किया जा सकता है। गाँवों को मूलभूत सुविधाएँ इसी पैसे से प्रदान की जा सकती हैं। यह पैसा गाँवों की तस्वीर बदल सकता है।
That’s it. These were the solutions of NCERT Class 12 Hindi Chapter 12 – बाजार दर्शन. Our team hopes that you have found these solutions helpful for you. If you have any doubt related to this chapter then feel free to comment your doubts below. Our team will try their best to help you with your doubts.